yajurveda/11/8

इ॒मं नो॑ देव सवितर्य॒ज्ञं प्रण॑य देवा॒व्यꣳ सखि॒विद॑ꣳ सत्रा॒जितं॑ धन॒जित॑ꣳ स्व॒र्जित॑म्। ऋ॒चा स्तोम॒ꣳ सम॑र्धय गाय॒त्रेण॑ रथन्त॒रं बृ॒हद् गा॑य॒त्रव॑र्त्तनि॒ स्वाहा॑॥८॥

इ॒मम्। नः॒। दे॒व॒। स॒वि॒तः॒। य॒ज्ञम्। प्र। न॒य॒। दे॒वा॒व्य᳖मिति॑ देवऽअ॒व्य᳖म्। स॒खि॒विद॒मिति॑ सखि॒ऽविद॑म्। स॒त्रा॒जित॒मिति॑ सत्रा॒ऽजित॑म्। ध॒न॒जित॒मिति॑ धन॒ऽजित॑म्। स्व॒र्जित॒मिति॑ स्वः॒ऽजित॑म्। ऋ॒चा। स्तोम॑म्। सम्। अ॒र्ध॒य॒। गा॒य॒त्रेण॑। र॒थ॒न्त॒रमिति॑ रथम्ऽत॒रम्। बृ॒हत्। गा॒य॒त्रव॑र्त्त॒नीति॑ गाय॒त्रऽव॑र्त्तनि। स्वाहा॑ ॥८ ॥

ऋषिः - प्रजापतिर्ऋषिः

देवता - सविता देवता

छन्दः - भुरिक् शक्वरी

स्वरः - धैवतः

स्वर सहित मन्त्र

इ॒मं नो॑ देव सवितर्य॒ज्ञं प्रण॑य देवा॒व्यꣳ सखि॒विद॑ꣳ सत्रा॒जितं॑ धन॒जित॑ꣳ स्व॒र्जित॑म्। ऋ॒चा स्तोम॒ꣳ सम॑र्धय गाय॒त्रेण॑ रथन्त॒रं बृ॒हद् गा॑य॒त्रव॑र्त्तनि॒ स्वाहा॑॥८॥

स्वर सहित पद पाठ

इ॒मम्। नः॒। दे॒व॒। स॒वि॒तः॒। य॒ज्ञम्। प्र। न॒य॒। दे॒वा॒व्य᳖मिति॑ देवऽअ॒व्य᳖म्। स॒खि॒विद॒मिति॑ सखि॒ऽविद॑म्। स॒त्रा॒जित॒मिति॑ सत्रा॒ऽजित॑म्। ध॒न॒जित॒मिति॑ धन॒ऽजित॑म्। स्व॒र्जित॒मिति॑ स्वः॒ऽजित॑म्। ऋ॒चा। स्तोम॑म्। सम्। अ॒र्ध॒य॒। गा॒य॒त्रेण॑। र॒थ॒न्त॒रमिति॑ रथम्ऽत॒रम्। बृ॒हत्। गा॒य॒त्रव॑र्त्त॒नीति॑ गाय॒त्रऽव॑र्त्तनि। स्वाहा॑ ॥८ ॥


स्वर रहित मन्त्र

इमं नो देव सवितर्यज्ञं प्रणय देवाव्यꣳ सखिविदꣳ सत्राजितं धनजितꣳ स्वर्जितम्। ऋचा स्तोमꣳ समर्धय गायत्रेण रथन्तरं बृहद् गायत्रवर्त्तनि स्वाहा॥८॥


स्वर रहित पद पाठ

इमम्। नः। देव। सवितः। यज्ञम्। प्र। नय। देवाव्य᳖मिति देवऽअव्य᳖म्। सखिविदमिति सखिऽविदम्। सत्राजितमिति सत्राऽजितम्। धनजितमिति धनऽजितम्। स्वर्जितमिति स्वःऽजितम्। ऋचा। स्तोमम्। सम्। अर्धय। गायत्रेण। रथन्तरमिति रथम्ऽतरम्। बृहत्। गायत्रवर्त्तनीति गायत्रऽवर्त्तनि। स्वाहा ॥८ ॥