yajurveda/11/65
ऋषिः - विश्वामित्र ऋषिः
देवता - वस्वादयो लिङ्गोक्ता देवताः
छन्दः - भुरिग्धृतिः
स्वरः - षड्जः
वस॑वः। त्वा॒। आ। छृ॒न्द॒न्तु॒। गा॒य॒त्रेण॑। छन्द॑सा। अ॒ङ्गि॒र॒स्वत्। रु॒द्राः। त्वा॒। आ। छृ॒न्द॒न्तु॒। त्रैष्टु॑भेन। त्रैस्तु॑भे॒नेति॒ त्रैऽस्तु॑भेन। छन्द॑सा। अ॒ङ्गि॒र॒स्वत्। आ॒दि॒त्याः। त्वा। आ। छृ॒न्द॒न्तु॒। जाग॑तेन। छन्द॑सा। अ॒ङ्गि॒र॒स्वत्। विश्वे॑। त्वा॒। दे॒वाः। वै॒श्वा॒न॒राः। आ। छृ॒न्द॒न्तु॒। आनु॑ष्टुभेन। आनु॑स्तुभे॒नेत्यानु॑ऽस्तुभेन। छन्द॑सा। अ॒ङ्गि॒र॒स्वत् ॥६५ ॥
वसवः। त्वा। आ। छृन्दन्तु। गायत्रेण। छन्दसा। अङ्गिरस्वत्। रुद्राः। त्वा। आ। छृन्दन्तु। त्रैष्टुभेन। त्रैस्तुभेनेति त्रैऽस्तुभेन। छन्दसा। अङ्गिरस्वत्। आदित्याः। त्वा। आ। छृन्दन्तु। जागतेन। छन्दसा। अङ्गिरस्वत्। विश्वे। त्वा। देवाः। वैश्वानराः। आ। छृन्दन्तु। आनुष्टुभेन। आनुस्तुभेनेत्यानुऽस्तुभेन। छन्दसा। अङ्गिरस्वत् ॥६५ ॥