yajurveda/11/63

दे॒वस्त्वा॑ सवि॒तोद्व॑पतु सुपा॒णिः स्व॑ङ्गु॒रिः सु॑बा॒हुरु॒त शक्त्या॑। अव्य॑थमाना पृथि॒व्यामाशा॒ दिश॒ऽआपृ॑ण॥६३॥

दे॒वः। त्वा॒। स॒वि॒ता। उत्। व॒प॒तु॒। सु॒पा॒णिरिति॑ सुऽपा॒णिः। स्व॑ङ्गु॒रिरिति॑ सुऽअङ्गु॒रिः। सु॒बा॒हुरिति॑ सुऽबा॒हुः। उ॒त। शक्त्या॑। अव्य॑थमाना। पृ॒थि॒व्याम्। आशाः॑। दिशः॑। आ। पृ॒ण॒ ॥६३ ॥

ऋषिः - विश्वामित्र ऋषिः

देवता - सविता देवता

छन्दः - भुरिग्बृहती बृहती

स्वरः - मध्यमः

स्वर सहित मन्त्र

दे॒वस्त्वा॑ सवि॒तोद्व॑पतु सुपा॒णिः स्व॑ङ्गु॒रिः सु॑बा॒हुरु॒त शक्त्या॑। अव्य॑थमाना पृथि॒व्यामाशा॒ दिश॒ऽआपृ॑ण॥६३॥

स्वर सहित पद पाठ

दे॒वः। त्वा॒। स॒वि॒ता। उत्। व॒प॒तु॒। सु॒पा॒णिरिति॑ सुऽपा॒णिः। स्व॑ङ्गु॒रिरिति॑ सुऽअङ्गु॒रिः। सु॒बा॒हुरिति॑ सुऽबा॒हुः। उ॒त। शक्त्या॑। अव्य॑थमाना। पृ॒थि॒व्याम्। आशाः॑। दिशः॑। आ। पृ॒ण॒ ॥६३ ॥


स्वर रहित मन्त्र

देवस्त्वा सवितोद्वपतु सुपाणिः स्वङ्गुरिः सुबाहुरुत शक्त्या। अव्यथमाना पृथिव्यामाशा दिशऽआपृण॥६३॥


स्वर रहित पद पाठ

देवः। त्वा। सविता। उत्। वपतु। सुपाणिरिति सुऽपाणिः। स्वङ्गुरिरिति सुऽअङ्गुरिः। सुबाहुरिति सुऽबाहुः। उत। शक्त्या। अव्यथमाना। पृथिव्याम्। आशाः। दिशः। आ। पृण ॥६३ ॥