yajurveda/11/60
ऋषिः - सिन्धुद्वीप ऋषिः
देवता - वस्वादयो मन्त्रोक्ता देवताः
छन्दः - स्वराट्संकृतिः
स्वरः - गान्धारः
वस॑वः। त्वा॒। धू॒प॒य॒न्तु॒। गा॒य॒त्रेण॑। छन्द॑सा। अ॒ङ्गि॒र॒स्वत्। रु॒द्राः। त्वा॒। धू॒प॒य॒न्तु॒। त्रैष्टु॑भेन। त्रैस्तु॑भेनेति॒ त्रैऽस्तु॑भेन। छन्द॑सा। अ॒ङ्गि॒र॒स्वत्। आ॒दि॒त्याः। त्वा॒। धू॒प॒य॒न्तु॒। जाग॑तेन। छन्द॑सा। अ॒ङ्गि॒र॒स्वत्। विश्वे॑। त्वा॒। दे॒वाः। वै॒श्वा॒न॒राः। धू॒प॒य॒न्तु॒। आनु॑ष्टुभेन। आनु॑स्तुभे॒नेत्यानु॑ऽस्तुभेन। छन्द॑सा। अ॒ङ्गि॒र॒स्वत्। इन्द्रः॑। त्वा॒। धू॒प॒य॒तु॒। वरु॑णः। त्वा॒। धू॒प॒य॒तु॒। विष्णुः॑। त्वा॒। धू॒प॒य॒तु॒ ॥६० ॥
वसवः। त्वा। धूपयन्तु। गायत्रेण। छन्दसा। अङ्गिरस्वत्। रुद्राः। त्वा। धूपयन्तु। त्रैष्टुभेन। त्रैस्तुभेनेति त्रैऽस्तुभेन। छन्दसा। अङ्गिरस्वत्। आदित्याः। त्वा। धूपयन्तु। जागतेन। छन्दसा। अङ्गिरस्वत्। विश्वे। त्वा। देवाः। वैश्वानराः। धूपयन्तु। आनुष्टुभेन। आनुस्तुभेनेत्यानुऽस्तुभेन। छन्दसा। अङ्गिरस्वत्। इन्द्रः। त्वा। धूपयतु। वरुणः। त्वा। धूपयतु। विष्णुः। त्वा। धूपयतु ॥६० ॥