yajurveda/11/2

यु॒क्तेन॒ मन॑सा व॒यं दे॒वस्य॑ सवि॒तुः स॒वे। स्व॒र्ग्याय॒ शक्त्या॑॥२॥

यु॒क्तेन॑। मन॑सा। व॒यम्। दे॒वस्य॑। स॒वि॒तुः। स॒वे। स्व॒र्ग्या᳖येति॑ स्वः॒ऽग्या᳖य॒। शक्त्या॑ ॥२ ॥

ऋषिः - प्रजापतिर्ऋषिः

देवता - सविता देवता

छन्दः - शङ्कुमती गायत्री

स्वरः - षड्जः

स्वर सहित मन्त्र

यु॒क्तेन॒ मन॑सा व॒यं दे॒वस्य॑ सवि॒तुः स॒वे। स्व॒र्ग्याय॒ शक्त्या॑॥२॥

स्वर सहित पद पाठ

यु॒क्तेन॑। मन॑सा। व॒यम्। दे॒वस्य॑। स॒वि॒तुः। स॒वे। स्व॒र्ग्या᳖येति॑ स्वः॒ऽग्या᳖य॒। शक्त्या॑ ॥२ ॥


स्वर रहित मन्त्र

युक्तेन मनसा वयं देवस्य सवितुः सवे। स्वर्ग्याय शक्त्या॥२॥


स्वर रहित पद पाठ

युक्तेन। मनसा। वयम्। देवस्य। सवितुः। सवे। स्वर्ग्या᳖येति स्वःऽग्या᳖य। शक्त्या ॥२ ॥