yajurveda/11/18

आ॒गत्य॑ वा॒ज्यध्वा॑न॒ꣳ सर्वा॒ मृधो॒ विधू॑नुते। अ॒ग्निꣳ स॒धस्थे॑ मह॒ति चक्षु॑षा॒ निचि॑कीषते॥१८॥

आ॒गत्येत्या॒ऽऽगत्य॑। वा॒जी। अध्वा॑नम्। सर्वाः॑। मृधः॑। वि। धू॒नु॒ते॒। अ॒ग्निम्। स॒धस्थ॒ इति॑ स॒धस्थे॑। म॒ह॒ति। चक्षु॑षा। नि। चि॒की॒ष॒ते॒ ॥१८ ॥

ऋषिः - मयोभूर्ऋषिः

देवता - अग्निर्देवता

छन्दः - निचृदनुष्टुप्

स्वरः - गान्धारः

स्वर सहित मन्त्र

आ॒गत्य॑ वा॒ज्यध्वा॑न॒ꣳ सर्वा॒ मृधो॒ विधू॑नुते। अ॒ग्निꣳ स॒धस्थे॑ मह॒ति चक्षु॑षा॒ निचि॑कीषते॥१८॥

स्वर सहित पद पाठ

आ॒गत्येत्या॒ऽऽगत्य॑। वा॒जी। अध्वा॑नम्। सर्वाः॑। मृधः॑। वि। धू॒नु॒ते॒। अ॒ग्निम्। स॒धस्थ॒ इति॑ स॒धस्थे॑। म॒ह॒ति। चक्षु॑षा। नि। चि॒की॒ष॒ते॒ ॥१८ ॥


स्वर रहित मन्त्र

आगत्य वाज्यध्वानꣳ सर्वा मृधो विधूनुते। अग्निꣳ सधस्थे महति चक्षुषा निचिकीषते॥१८॥


स्वर रहित पद पाठ

आगत्येत्याऽऽगत्य। वाजी। अध्वानम्। सर्वाः। मृधः। वि। धूनुते। अग्निम्। सधस्थ इति सधस्थे। महति। चक्षुषा। नि। चिकीषते ॥१८ ॥