yajurveda/1/16
ऋषिः - परमेष्ठी प्रजापतिर्ऋषिः
देवता - वायुः सविता देवता
छन्दः - स्वराट् ब्राह्मी त्रिष्टुप्,विराट् गायत्री,
स्वरः - षड्जः
कु॒क्कु॒टः। अ॒सि॒। मधु॑जिह्व॒ इति॒ मधु॑ऽजिह्वः। इष॑म्। ऊर्ज्ज॑म्। आ। वद॒। त्वया॑। व॒यं। सं॒घा॒तम् सं॑घात॒मि॑ति संघा॒तꣳसं॑घातम्। जे॒ष्म॒। व॒र्षवृद्ध॒मिति व॒र्षऽवृद्ध॑म्। अ॒सि॒। प्रति। त्वा॒। व॒र्षवृ॑द्ध॒मिति व॒र्षऽवृ॑द्धम्। वे॒त्तु॒। परा॑पूत॒मिति॒। परा॑ऽपूतम्। रक्षः॑। परा॑पूता॒ इति॒ परा॑ऽपूताः। अरा॑तयः। अप॑हत॒मित्यप॑ऽहतम्। रक्षः॑। वा॒युः। वः॒। वि। वि॒न॒क्तु दे॒वः। वः॒। स॒वि॒ता। हिर॑ण्यपाणि॒रिति॒ हिर॑ण्यऽपाणिः। प्रति॑। गृ॒भ्णा॒तु॒। अच्छिद्रेण। पा॒णिना॑ ॥१६॥
कुक्कुटः। असि। मधुजिह्व इति मधुऽजिह्वः। इषम्। ऊर्ज्जम्। आ। वद। त्वया। वयं। संघातम् संघातमिति संघातꣳसंघातम्। जेष्म। वर्षवृद्धमिति वर्षऽवृद्धम्। असि। प्रति। त्वा। वर्षवृद्धमिति वर्षऽवृद्धम्। वेत्तु। परापूतमिति। पराऽपूतम्। रक्षः। परापूता इति पराऽपूताः। अरातयः। अपहतमित्यपऽहतम्। रक्षः। वायुः। वः। वि। विनक्तु देवः। वः। सविता। हिरण्यपाणिरिति हिरण्यऽपाणिः। प्रति। गृभ्णातु। अच्छिद्रेण। पाणिना ॥१६॥