atharvaveda/19/57/4

तं त्वा॑ स्वप्न॒ तथा॒ सं वि॑द्म॒ स त्वं स्व॒प्नाश्व॑ इव का॒यमश्व॑ इव नीना॒हम्। अ॑नास्मा॒कं दे॑वपी॒युं पिया॑रुं वप॒ यद॒स्मासु॑ दुः॒ष्वप्न्यं॒ यद्गोषु॒ यच्च॑ नो गृ॒हे ॥

तम्। त्वा॒। स्व॒प्न॒। तथा॑। सम्। वि॒द्म॒। सः। त्वम्। स्व॒प्न॒। अश्वः॑ऽइव। का॒यम्। अश्वः॑ऽइव। नी॒ना॒हम्। अ॒ना॒स्मा॒कम्। दे॒व॒ऽपी॒युम्। पिया॑रुम्। व॒प॒। यत्। अ॒स्मासु॑। दुः॒ऽस्वप्न्य॑म्। यत्। गोषु॑। यत्। च॒। नः॒। गृ॒हे ॥५७.४॥

ऋषिः - यमः

देवता - दुःष्वप्ननाशनम्

छन्दः - षट्पदोष्णिग्बृहतीगर्भा विराट्शक्वरी

स्वरः - दुःस्वप्नानाशन सूक्त

स्वर सहित मन्त्र

तं त्वा॑ स्वप्न॒ तथा॒ सं वि॑द्म॒ स त्वं स्व॒प्नाश्व॑ इव का॒यमश्व॑ इव नीना॒हम्। अ॑नास्मा॒कं दे॑वपी॒युं पिया॑रुं वप॒ यद॒स्मासु॑ दुः॒ष्वप्न्यं॒ यद्गोषु॒ यच्च॑ नो गृ॒हे ॥

स्वर सहित पद पाठ

तम्। त्वा॒। स्व॒प्न॒। तथा॑। सम्। वि॒द्म॒। सः। त्वम्। स्व॒प्न॒। अश्वः॑ऽइव। का॒यम्। अश्वः॑ऽइव। नी॒ना॒हम्। अ॒ना॒स्मा॒कम्। दे॒व॒ऽपी॒युम्। पिया॑रुम्। व॒प॒। यत्। अ॒स्मासु॑। दुः॒ऽस्वप्न्य॑म्। यत्। गोषु॑। यत्। च॒। नः॒। गृ॒हे ॥५७.४॥


स्वर रहित मन्त्र

तं त्वा स्वप्न तथा सं विद्म स त्वं स्वप्नाश्व इव कायमश्व इव नीनाहम्। अनास्माकं देवपीयुं पियारुं वप यदस्मासु दुःष्वप्न्यं यद्गोषु यच्च नो गृहे ॥


स्वर रहित पद पाठ

तम्। त्वा। स्वप्न। तथा। सम्। विद्म। सः। त्वम्। स्वप्न। अश्वःऽइव। कायम्। अश्वःऽइव। नीनाहम्। अनास्माकम्। देवऽपीयुम्। पियारुम्। वप। यत्। अस्मासु। दुःऽस्वप्न्यम्। यत्। गोषु। यत्। च। नः। गृहे ॥५७.४॥