atharvaveda/19/50/6

यद॒द्या रा॑त्रि सुभगे वि॒भज॒न्त्ययो॒ वसु॑। यदे॒तद॒स्मान्भोज॑य॒ यथेद॒न्यानु॒पाय॑सि ॥

यत्। अ॒द्य। रा॒त्रि॒। सु॒ऽभ॒गे॒। वि॒ऽभज॑न्ति। अयः॑। वसु॑ ॥ यत्। ए॒तत्। अ॒स्मान्। भो॒ज॒य॒। यथा॑। इत्। अ॒न्यान्। उ॒प॒ऽअय॑सि ॥५०.६॥

ऋषिः - गोपथः

देवता - रात्रिः

छन्दः - अनुष्टुप्

स्वरः - रात्रि सूक्त

स्वर सहित मन्त्र

यद॒द्या रा॑त्रि सुभगे वि॒भज॒न्त्ययो॒ वसु॑। यदे॒तद॒स्मान्भोज॑य॒ यथेद॒न्यानु॒पाय॑सि ॥

स्वर सहित पद पाठ

यत्। अ॒द्य। रा॒त्रि॒। सु॒ऽभ॒गे॒। वि॒ऽभज॑न्ति। अयः॑। वसु॑ ॥ यत्। ए॒तत्। अ॒स्मान्। भो॒ज॒य॒। यथा॑। इत्। अ॒न्यान्। उ॒प॒ऽअय॑सि ॥५०.६॥


स्वर रहित मन्त्र

यदद्या रात्रि सुभगे विभजन्त्ययो वसु। यदेतदस्मान्भोजय यथेदन्यानुपायसि ॥


स्वर रहित पद पाठ

यत्। अद्य। रात्रि। सुऽभगे। विऽभजन्ति। अयः। वसु ॥ यत्। एतत्। अस्मान्। भोजय। यथा। इत्। अन्यान्। उपऽअयसि ॥५०.६॥