atharvaveda/19/29/7

ओष॑ दर्भ स॒पत्ना॑न्मे॒ ओष॑ मे पृतनाय॒तः। ओष॑ मे॒ सर्वा॑न्दु॒र्हार्दो॒ ओष॑ मे द्विष॒तो म॑णे ॥

ओष॑। द॒र्भ॒। स॒ऽपत्ना॑न्। मे॒। ओष॑। मे॒। पृ॒त॒ना॒ऽय॒तः। ओष॑। मे॒। सर्वा॑न्। दुः॒ऽहार्दः॑। ओष॑। मे॒। द्वि॒ष॒तः। म॒णे॒ ॥२९.७॥

ऋषिः - ब्रह्मा

देवता - दर्भमणिः

छन्दः - अनुष्टुप्

स्वरः - दर्भमणि सूक्त

स्वर सहित मन्त्र

ओष॑ दर्भ स॒पत्ना॑न्मे॒ ओष॑ मे पृतनाय॒तः। ओष॑ मे॒ सर्वा॑न्दु॒र्हार्दो॒ ओष॑ मे द्विष॒तो म॑णे ॥

स्वर सहित पद पाठ

ओष॑। द॒र्भ॒। स॒ऽपत्ना॑न्। मे॒। ओष॑। मे॒। पृ॒त॒ना॒ऽय॒तः। ओष॑। मे॒। सर्वा॑न्। दुः॒ऽहार्दः॑। ओष॑। मे॒। द्वि॒ष॒तः। म॒णे॒ ॥२९.७॥


स्वर रहित मन्त्र

ओष दर्भ सपत्नान्मे ओष मे पृतनायतः। ओष मे सर्वान्दुर्हार्दो ओष मे द्विषतो मणे ॥


स्वर रहित पद पाठ

ओष। दर्भ। सऽपत्नान्। मे। ओष। मे। पृतनाऽयतः। ओष। मे। सर्वान्। दुःऽहार्दः। ओष। मे। द्विषतः। मणे ॥२९.७॥