atharvaveda/19/28/7

वृ॒श्च द॑र्भ स॒पत्ना॑न्मे वृ॒श्च मे॑ पृतनाय॒तः। वृ॒श्च मे॒ सर्वा॑न्दु॒र्हार्दो॑ वृ॒श्च मे॑ द्विष॒तो म॑णे ॥

वृ॒श्च। द॒र्भ॒। स॒ऽपत्ना॑न्। मे॒। वृ॒श्च। मे॒। पृ॒त॒ना॒ऽय॒तः। वृ॒श्च। मे॒। सर्वा॑न्। दु॒ऽहार्दः॑। वृ॒श्च। मे॒। द्वि॒ष॒तः। म॒णे॒ ॥२८.७॥

ऋषिः - ब्रह्मा

देवता - दर्भमणिः

छन्दः - अनुष्टुप्

स्वरः - दर्भमणि सूक्त

स्वर सहित मन्त्र

वृ॒श्च द॑र्भ स॒पत्ना॑न्मे वृ॒श्च मे॑ पृतनाय॒तः। वृ॒श्च मे॒ सर्वा॑न्दु॒र्हार्दो॑ वृ॒श्च मे॑ द्विष॒तो म॑णे ॥

स्वर सहित पद पाठ

वृ॒श्च। द॒र्भ॒। स॒ऽपत्ना॑न्। मे॒। वृ॒श्च। मे॒। पृ॒त॒ना॒ऽय॒तः। वृ॒श्च। मे॒। सर्वा॑न्। दु॒ऽहार्दः॑। वृ॒श्च। मे॒। द्वि॒ष॒तः। म॒णे॒ ॥२८.७॥


स्वर रहित मन्त्र

वृश्च दर्भ सपत्नान्मे वृश्च मे पृतनायतः। वृश्च मे सर्वान्दुर्हार्दो वृश्च मे द्विषतो मणे ॥


स्वर रहित पद पाठ

वृश्च। दर्भ। सऽपत्नान्। मे। वृश्च। मे। पृतनाऽयतः। वृश्च। मे। सर्वान्। दुऽहार्दः। वृश्च। मे। द्विषतः। मणे ॥२८.७॥