atharvaveda/19/28/10

विध्य॑ दर्भ स॒पत्ना॑न्मे॒ विध्य॑ मे पृतनाय॒तः। विध्य॑ मे॒ सर्वा॑न्दु॒र्हार्दो॒ विध्य॑ मे द्विष॒तो म॑णे ॥

विध्य॑। द॒र्भ॒। स॒ऽपत्ना॑न्। मे॒। विध्य॑। मे॒। पृ॒त॒ना॒ऽय॒तः। विध्य॑। मे॒। सर्वा॑न्। दुः॒ऽहार्दः॑। विध्य॑। मे॒। द्वि॒ष॒तः। म॒णे॒ ॥२८.१०॥

ऋषिः - ब्रह्मा

देवता - दर्भमणिः

छन्दः - अनुष्टुप्

स्वरः - दर्भमणि सूक्त

स्वर सहित मन्त्र

विध्य॑ दर्भ स॒पत्ना॑न्मे॒ विध्य॑ मे पृतनाय॒तः। विध्य॑ मे॒ सर्वा॑न्दु॒र्हार्दो॒ विध्य॑ मे द्विष॒तो म॑णे ॥

स्वर सहित पद पाठ

विध्य॑। द॒र्भ॒। स॒ऽपत्ना॑न्। मे॒। विध्य॑। मे॒। पृ॒त॒ना॒ऽय॒तः। विध्य॑। मे॒। सर्वा॑न्। दुः॒ऽहार्दः॑। विध्य॑। मे॒। द्वि॒ष॒तः। म॒णे॒ ॥२८.१०॥


स्वर रहित मन्त्र

विध्य दर्भ सपत्नान्मे विध्य मे पृतनायतः। विध्य मे सर्वान्दुर्हार्दो विध्य मे द्विषतो मणे ॥


स्वर रहित पद पाठ

विध्य। दर्भ। सऽपत्नान्। मे। विध्य। मे। पृतनाऽयतः। विध्य। मे। सर्वान्। दुःऽहार्दः। विध्य। मे। द्विषतः। मणे ॥२८.१०॥